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फतवे की राजनीती !कश्मीरियत पर भारी
खामोश है की लब गुलाम है तेरे ,अब तू ही बता मुझे बोलना कब है ? ()
घाटी मे जब महिला बेंड ” प्रगाश ” (सुबह पहली रौशनी ) के विरुद्द फतवा जारी हुआ और उन लडकियों नोमा नज़ीर (१६ साल ) , अनिका(१६ साल ) , दीवा (१५
साल ) ने , फेसबुक ट्विटर से मिली हत्या और बलात्कार की धमकियों से डर कर अपना संगीत बेंड बंद ही कर दिया तो दुनिया भर के युवा मुस्लिमो को सोच मे जरुर डाल दिया होंगा की घाटी मे मुस्लिम समाज का विकास किस दिशा मे हो रहा है ? मुफ़्ती बशीरुद्दीन सहाब ने संगीत को गैर इस्लामी बोलकर कश्मीर ही नही दुनिया भर की सूफी परंपरा को नकार दिया है | सूफी लोग खुदा की बंदगी गा कर करते आये है जो कश्मीर के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है | वे पाकिस्तान मे क्यों नही झाख कर देखते जहा फिल्मे भी बनती है और जनून जैसे बेंड भी है और अदनान सामी जेसे गायक भारत आकर गाने गाते है ।मरहूम नुसरत अली सहाब को कोन नही जनता दुनिया मे? दुनिया भर मे गरीबी की मारी हर धर्म की औरते हर गन्दा काम करने को मजबूर है | इस्लामी फतवे नारी उद्दार के लिए क्यों नही होते ? जो लोग मानव व्यापार / देहव्यापार / शराब पिने – पिलाने मे लगे है उनके विरुद कोई फतवा नही आता क्यों ? जबकि ये काम भी तो धर्म विरुद्ध है | ये फतवे समाज को किस दिशा मे ले जा रहे है ? समाज की सुबह होने की रौशनीपर भी रोक लग गयी हा उमर अब्दुल्ला जैसे लोग बधाई के पात्र है जो इन
सरफिरो के विरुद कुछ बोलने की हिम्मत रखते है ।और बड़े अब्दुल्ला संगीत को बढावा देते नजर आते है|गा भी रहे है और बजा भी रहे है | एक और मुफ़्ती सहाब फरमाते है की इस्लाम संगीत की इजाजत नही देता ” पर हज़रत सहाब की शान मे होने वाली कव्वालियो को सुनकर कोन नही झूम जाता होंगा ? साबरी बंधुयो को कोन नही जानता भारत मे ?
जब हज़रात सहाब अपने खास अबू बक्र के साथ मक्का से मदीना पहुचे तब उनके साथ अल्लहा का नूर था | बहा पर मुस्लिमो ने उनकी शान मे पवित्र संगीत बजा कर “Talaa El-Badru Alayna” गाया जिसका मतलब है की पूर्ण चाँद प्रकाशित हो गया है ” उस समय न अब्दुल बहाब सहाब Muhammad ibn Abd al-Wahhab (1703–1792) का बहाबी आन्दोलन था न सिया – सुन्नी का भेद नही तो क्या पता उस समय भी एक फतवा गाने बालो के विरुद्ध जारी हो जाता इससे क्या ……. लोगो को अपनी राजनीती चमकानी है , कुछ भी कहे दो खवर बन ही जाती है|टीवी और अखबारों को भी ये बयान लुभाते है अंत मे सीमा पार के आका तो खुश हो ही जाते है |
सच तो यह है की अब हर धर्म मे, धर्म के ठेकेदार अपने फायेदे और राजनीती के तहत मूल नियमो को तोड़ मरोड़ कर बनाये नियमो को धर्मसम्मत बता कर , सदियों से अपना उल्लू सीधा करते आये है और सत्ता इनके आगे सर झुकाकर अपने को धन्ये समझती है ! जो वास्तव मे , इन के साथ जुड़े वोटो को लुभाने का नाटक ही होता है | जबकि धर्म मनुस्ये के सामाजिक , मानसिक ,आध्यत्मिक और , वैयक्तिगत विकास के लिए मनोविज्ञानिक उपाए है |यूरोपीयन पुनर्जागरण पर टिप्पणी करते हुए हॉलैंड के महान विद्वान इरेस्मस ने सच ही कहा था ” इश्वर
है और ये बिलकुल सच है ! पर अगर नही है ,तो भी उसे बनाये रखना , मानवता के लिए जरूरी है
जनाब ! ये भारत है जहा लाखो मुस्लिम एवं सभी धर्मो की महिलाये और पुरुष अपनी हर स्वस्थ अभिव्यक्ति के पर्देर्शन के लिए आजाद है ।और ये यहा सबका मूल अधिकार है जो सविधान प्रदत्त है | उनको हर जगह इज्जत और सामान अबसर मिलता है | उन सब महिलायों को सुरक्षा ,अभिव्यक्ति , विकास का मोका देना | अब सरकार की जिम्मेदारी है । इस मुद्दे पर प्रगतिशील मुस्लिमो के बयान का इंतजार रहेंगा ।
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